वाराणसी के प्रशिद्ध मन्दिर और पर्यटन स्थल
माँ गंगा के सानिध्य से काशी के घाटों की शोभा बहुत बढ़ गयी है।
लाखों यात्री प्रतिवर्ष का दर्शन एवं गंगा स्नान करने हेतु आते हैं। भगवान शंकरचार्य, बुद्ध, तुलसीदास आदि महर्षियों ने अपनी साधनायें यहीं पूरी की है।
ये घाट चार हजार वर्षों से काशी की शोभा बढ़ा रहे हैं।
हरिश्चन्द्र घाट
वाराणसी में गंगा के तट पर बने घाटों की संख्या लगभग 84 हैं। इनमें से कुछ घाट काफी पुराने हैं। हरिश्चन्द्र घाट भी इनमें से एक मुख्य एवं प्राचीन घाट के रूप में माना जाता है। प्राचीन गाथाओं के अनुसार महर्षि विश्वामित्र को अपना सब कुछ दान कर देने के पश्चात् महाराज हरिश्चन्द्र यहीं पर बिके थे।
इसका निर्माण आमेर के राजा मानसिंह द्वारा हुआ है।
यह बहुत ही पवित्र स्थल है। यहाँ पर माधवराज का धरहरा काफी दिनों से काफी ऊँचा है। माधवराज के धरहरे पर खड़े होकर पूरे काशी का अवलोकन हो सकता था। वर्तमान समय में यह पुरातत्व विभाग इसकी देखपाल करता है। इसकी दोनों बुर्जियाँ खण्डित है। काफी दिनों से इसकी मरम्मत न होने से यह बहुत जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हो गया है। किंवदन्तियों के अनुसार प्राचीनकाल में इसी घाट पर पण्डित राय जगन्नाथ अपनी यवन पत्नी के साथ गंगा जी की गोद में समा गये थे।
यह घाट काशी के पंचतीर्थों के अन्तर्गत आता है। (इसके अन्तर्गत पाँच पवित्र स्थल अस्सी, दशाश्वमेध, मणिकार्णिका, पंचगंगा तथा वरुणा संगम आते हैं)। ऐसा कहा जाता है कि महाराज दिवोदास ने इसी दशाश्वमेध घाट पर अश्वमेध यज्ञ किया था।
दक्षिण भारतीय लोगों का निवास स्थल है। हजारों की संख्या में यात्री आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक आदि शहरों से यहाँ आते हैं तथा यहाँ के घाटों एवं मन्दिरों का दर्शन करते हैं।
काशी का मुक्ति स्थल माना गया है। यह पाँच तीर्थों में एक है। वह वही स्थान है, जहाँ पर भगवान शिव ने विश्णु से शपथ ली है कि जिस मृत शरीर का अन्तिम दाह संस्कार यहाँ होगा वह स्वर्गलोक का अधिकारी होगा। अत: यहाँ पर दूर-दूर से मृत शरीर अन्तिम दाह संस्कार के लिए लाये जाते हैं। इस प्रकार मणिकर्णिका घाट का काफी महत्व माना गया है।
यहीं पर एक कुण्ड है माता सती के कानों के कुण्डलों की मणि इसी कुण्ड में किरने से इसे मणिकर्णिका कहा जाने लगा। यह एक पवित्र तीर्थ स्थल है।
यह मन्दिर काशी के प्रमुख मन्दिरों में माना जाता है। लाखों यात्री प्रतिवर्ष भगवान शंकर के इस मन्दिर में दर्शनार्थ आते हैं। इसका निर्माण इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई ने सन् 1758 किया था। इसका शिखर 22/2 मन सोने से निर्मित है। जिसे पंजाब नरेश महाराजा रणजीत सिंह जी ने सन् 1839 में चढ़वाया है।
माँ अन्नपूर्णा का मन्दिर विश्वनाथ मन्दिर से थोड़ा पहले हैं। मन्दिर के अन्दर माँ अन्नपूर्णा की भव्य मूर्ति लोगों के दर्शनार्थ प्रतिष्ठित है। माँ अन्नपूर्णा की एक स्वर्णमयी मूर्ति उपर भी है। इसमें त्रिपुरारी जी
माँ अन्नपूर्णा से भिक्षा मांग रहे है। यह दर्शन रंगभरी एकादशी एवं दीपावली के अवसर पर सुलभ होता है।
माँ अन्नपूर्णा के मन्दिर के अत्यन्त सन्निकट गली के छोर पर दुण्डिराज बाल गणेश की एक विशालकाय मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह बहुत ही प्राचीन मूर्ति है। इसके दर्शन से मनुष्य के सारे पापादि कट जाते हैं।
वह इससे मुक्ति पा लेता है। इस प्रकार इनके दर्शन एवं पूजन का अत्यन्त माना गया है। इनका इतना महत्व होने के कारण ही किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है।
श्री विश्वनाथ मन्दिर से कुछ दूर दक्षिण पूर्व की ओर माँ विशालाक्षी का अत्यन्त सुन्दर तथा चित्ताकर्षक मन्दिर है जो अनायास ही दर्शकों का मन मोह लेता है। मुख्य द्वार के अन्दर माँ की एक विशाल मुर्ति प्रतिष्ठित है। माँ के दर्शन हेतु दक्षिण भारत से भारी संख्या में यात्री लोग आते हैं।
श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर से एक कि.मी. उपर पूर्व की ओर श्री काल भैरव जी का मन्दिर है। यह सन् १७१५ ई. में बाजीराव पेशवा द्वारा निर्मित कराया गया है। ये काशी वासियों को रोगों तथा भय से मुक्ति
दिलाते हैं। अत: काशी वासी इनको काशी का कोतवाल भी कहते हैं। काशी आने पर सर्व प्रथम इनका दर्शन करना अनिवार्य है।
काशी के दक्षिण दिशा की ओर दुर्गाकुण्ड के ऊपरगी दुर्गा का एक विशालकाय मन्दिर है। इसकी छटा देखते ही बनती है। मन्दिर में दुर्गा की भव्य मूर्ति विद्यमान है। माँ के दर्शन हेतु भारत के विभिन्न भागों से भारी संख्या में यात्री लोग आते है।
दुर्गा मन्दिर के बाद तुलसी मानस मन्दिर का दर्शन होता है। यह सन् 1964 में निर्मित हुआ है। इसके निर्माण में लगभग 20 लाख रुपये खर्च हुए हैं। यह पूर्णत: संगमरमर पत्थर से बना है। इसके दीवारों पर पूरी रामायण अंकित है। अन्दर भगवान राम की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
यहाँ पर सावन के महीने में भारी भीड़ होती है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर बीच में इस विशालकाय मन्दिर का निर्माण राजा बिरला द्वारा हुआ है। इस मन्दिर की गियारों पर सांस्कृतिक एवं शास्त्रीय उद्धरण सचित्र अंकित है। मन्दिर के मध्य अरखे में आबा विश्वनाथ का लिंग प्रतिष्ठित है। इसके अलावा मन्दिर में लक्ष्मीनारायण, दुर्गा, पार्वती और गणेश आदि की भी मूर्तियाँ हैं। मन्दिर आकर्षक ढंग से निर्मित है।
विद्यापीठ रोड पर भारत माता का मन्दिर स्थित है। यहाँ पर पूरे भारतवर्ष का मानचित्र संगमरमर को काट-काट कर बनाया गया है। इसमें समुद्र की गहराई तथा पर्वतों की उँचाई तक के ठीक-ठीक माप हैं व यह आशा की जाती है कि इस प्रकार का मानचित्र अन्यत्र दुर्लभ है। इसके पास ही विद्यापीठ लाइब्रेई है।
वारणसी से दक्षिण की ओर माँ गंगा के दाहिने किनारे पर रामनगर का किला है। यह कई सौ वषों से गंगा की शोभा में वृद्ध कर रहा है। इसकी छटा अपूर्व है। किले के अन्दर प्राचीन जमाने की बहुत सी चीजें यात्रियों के देखने के लिए रखी हुई हैं। यात्री टिकट खरीद कर उनका अवलोकन करते हैं। महाराज काशी नरेश इसी किले में रहते हैं।
टिकट लेकर इनको देखा जा सकता है। ये चीजें सारनाथ की जमीने खोदने से प्राप्त हुई हैं। यहाँ पर रेलवे स्टेशन भी है। यात्रियों की सुविधा के लिए राजा बिरला द्वारा बनवायी गयी धर्मशाला है। इसके सामने मूगन्ध कुटी बिहार है। सावन के महीने में यहाँ दर्शनार्थियों की भारी भीड़ होती है।
यह सारनाथ जाते समय आकाशवाणी प्रसारण स्थल के पास है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने यहीं पर अपने पाँच शिष्यों को उपदेश दिया था। इसके चारों तरफ घेरा बन्दी है। बीच में मिट्टी का दिला है।
इसके ऊपर गुम्बदकार चोटी पर स्थित है। यह यात्रियों का मन आकर्षित कर लेती है।
भारत सरकार द्वारा यहाँ पर एक संग्रहालय का निर्माण किया गया है। इसमें सारनाथ को खोदई से प्राप्त हुई वस्तुओं का संग्रह किया गया है। ये सभी चीजें हमको भगवान बुद्ध के समय की याद दिलाती है।
भारत सरकार द्वारा प्रचलित आधुनिक सिक्के का चौमुखी सिंह स्तम्भ (अशोक की लाट) भी अन्दर रखा हुआ है। इस प्रकार बहुत सी चीजे उस म्यूजियम के अन्दर देखने हेतु सुरक्षित रखी हुई है। यह 9 बजे प्रात: से सायं 5 तक खुलता है। शुक्रवार को बन्दरहता है।
सारनाथ ने औद्ध राजाओं के समय में काफी उन्नति की है। इसके साथ-साथ कनिष्क तथा गुप्त राजाओं के भी समय में इसने काफी उन्नति की। इसके अन्दर के प्राचीन खण्डहर आज भी देखने योग्य
यह मन्दिर सिलौन के अनागरिक धर्मपाल द्वारा निर्मित है। इसके अन्दर भगवान बुद्ध की एक सुनहरी मूर्ति रखी हुई है। इसको देखने के लिए दूर-दूर से यात्री लोग आते हैं। इसके अन्दर दीवारों पर भगवान
बुद्ध के जीवन चरित्र से सम्बन्धित चित्र एक जापानी चित्रकार द्वारा बनाये गये हैं।
यह सुबह 7 बजे से लेकर 12:30 तक एवं दोपहर 2 बजे से सायं 7 बजे तक खुलता है।
बौद्ध तीर्थ सारनाथ में चाइना मन्दिर अपनी एक विशेष महत्व रखता है। यह मन्दिर एक चायनीज पैगोडा के रूप में बना हुआ है।
मन्दिर के अन्दर भगवान बुद्ध की मूर्ति ज्ञान मुद्रा में अवस्थित है। मूर्ति में एक विशेष आकर्षणा एवं प्रतिभा है। मन्दिर में बुद्ध की प्रतिमा के सामने एक अखण्ड ज्योति प्रज्वलित है।
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